सब कहते हैं, तुम कोई हूर नहीं,
मामूली सी हो, कोई मशहूर नहीं।
मैं कहता हूँ कि उनका कोई कसूर नहीं,
किसी ने देखा ही नहीं मेरी नज़रों से,
तेरे चेहरे का वो नूर कभी।
है दोनों जहाँ में न तुमसा कहीं,
हूरों से भी ज्यादा तुम हो हसीं।
सब कहते हैं कि तुम एक झूठा सपना हो,
मिथ्या हो, तुम तो बस एक कल्पना हो।
मैं कहता हूँ की सपने भले ही झूठें हों,
मुझसे अपने भले ही रूठें हों,
कुछ उलटे - सीधे सवाल भी उठें हों,
क्या झूठ है वो मुस्कान मेरी,
जब-जब साथ मेरे तुम बैठे हो?
है साथ हमारा आज नहीं,
हो सात जन्म के बाद सही।
एक दिन जब तुम आजाओगी,
सबको सच्चाई बतलाओगी।
प्यास मेरी जो अधूरी होगी,
तुम आसुंओ से अपनी बुझाओगी।
जब अंतिम सबर भी टूटेगा,
मैं रौद्र रुप दिखलाऊंगा।
फिर भी सवाल जो फूटेगा,
उस दिन सबको बतलाऊंगा -
हो कथा मेरी, तुम व्यथा नहीं,
तुम "सत्या" हो, कोई मिथ्या नहीं।
मैं हूँ मलंग, तुम सत्संग मेरी,
मैं हूँ प्रसंग, तुम जंग मेरी।
दिवाली की "ज्योति" हो तुम,
होली की हो रंग मेरी।
तुम हूर नहीं, हो हीर मेरी,
हूँ राँझा मैं, तुम पीर मेरी
अबआजाओ बन तक़दीर मेरी,
फिर कोई जो पूछे कौन हो तुम,
मैं बन जाऊं तस्वीर तेरी।
- मनीष कुमार टिंकू

Dil se likhi gyi kavita❤️🌻
ReplyDeleteDil khush kr ditta tusssi 😍😍😍 every line give me goosebumps 🥹🥰
ReplyDeleteWelcome Dear.
Delete