इंसानियत का कोई धर्म नहीं,
इंसानो में भेद करना उनका कर्म नहीं,
किसी दिन कोई गरीब भूख से मरे कहीं,
फिर रहे इंसानियत में कोई शर्म नहीं।
बेहद गरीबी की कोई सरहद नहीं,
दो रोटी जो बाँट दो, तो होगी कम बरकत नहीं,
दो मुल्कों में हो गर इतनी नफरत नहीं,
न रहे कोई गरीब, कोई सरहद और दहशत कहीं।
मिटा कर देखो उन लकीरों को कभी,
मिल कर तोड़ दो जंजीरो को सभी,
किसी दिन जो चाँद से मिलें ज़मीं,
न रहें कोई मुल्क, हो शिकवे-गिले नहीं।
-मनीष कुमार टिंकू

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