तुझसे मिलना भी अब सपना सा है,
जो तुझसे मिलता है, क्या कोई अपना सा है?
तुझे सोच कर अब भी चेहरे पे आती है "मुस्कान",
जो तुझसे सोच न मिले, तो क्या हो जाऊं अनजान ?
तुझे अब भी संभाल कर रखा है किताबों के बीच,
जो तुझसे कांटे हैं मिले, क्यों मिलें उन गुलाबों को सींच?
तुझसे कहना मैं चाहता हूँ दिल की बात,
जो तुझसे कह देता, तो क्या होती वो आख़िरी मुलाक़ात ?
तुझे अब भी देख लेता हूँ, मैं बंद आँखों के पार,
जो तुझे मैं भले ही न दिखूँ , क्यूँ मुझे है दिखती तू लाखों के पार?
तुझे वादा किया था न भूलने का कभी ,
जो न भूलूँ तो क्या आओगी मिलने तोड़कर बंधन सभी?
-मनीष कुमार टिंकू

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