
मेरे तो, सावन थे तुम,
बिन बादल बरसात किए बहार जो लाते थे,
मेरे तो, यौवन थे तुम,
पावन पुष्प पुलकित कर पल में, फुहार जो लाते थे,
मेरे तो, मनभावन थे तुम,
परम प्रेम प्रमाणित किए बिन जो प्यार जताते थे,
मेरे तो, आँगन थे तुम,
तेज़ तरुण तुलसी से जो घर-बार सजाते थे,
मेरे तो, माधव थे तुम,
रात्रि रोज राधा रानी संग जो रास रचाते थे,
मेरे तो, प्रारभ थे तुम,
निर्मल निश्छल निरूपण मन के पास जो लाते थे,
मेरे तो, अंजन थे तुम,
नव नयन नभ अयन से बहकर जो निबंध बन जाते थे।
तेरे तो, मनोरंजन थे हम,
अमुक अज्ञात अविरल अज्ञान के अश्रु से अंजुली भर आते थे।
-मनीष कुमार टिंकू
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteWaah Manish Ji. Bahot achha hai.
ReplyDelete😊❤️
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